सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के पुलिस अधिकारी सीमांत कुमार सिंह और आईएएस जे मंजूनाथ के लिए एक राहत भरा फैसला सुनाते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा ‘दागी अधिकारी’ और कर्नाटक भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को ‘उगाही केंद्र’ कहने वाली टिप्पणियों पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने उच्च न्यायालय को जमानत मामले पर नए सिरे से फैसला करने का निर्देश दिया है।
दरअसल, कर्नाटक के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के प्रमुख एडीजीपी सीमांत कुमार सिंह और जेल में बंद आईएएस अधिकारी जे मंजूनाथ ने हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एचपी संदेश द्वारा की गई टिप्पणी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसपर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। याचिका में जे मंजूनाथ ने कहा था कि जस्टिस संदेश द्वारा की गई टिप्पणी के बाद मुझे मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ रहा है।वहीं एडीजीपी सीमांत कुमार सिंह ने भी जस्टिस संदेश द्वारा की गई टिप्पणी के खिलाफ शीर्ष अदालत से राहत की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी। इन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख तब किया था जब कर्नाटक उच्च न्यायलय के न्यायाधीश ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को एक उगाही केंद्र बताते हुए इसके एडीजीपी सीमांत कुमार सिंह को दागी अधिकारी बताया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान इन टिप्पणियों पर रोक लगाते हुए कहा कि उन टिप्पणियों का मामले से कोई लेना-देना नहीं था, ना ही ये टिप्पणियां कार्यवाही के दायरे में हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अधिकारी का आचरण उस मामले से संबंधित नहीं है जिस पर सुनवाई हो रही थी। जमानत अर्जी पर विचार करने के बजाय न्यायाधीश का दूसरी चीजों पर फोकस था।इस मामले में दोनों अधिकारियों की याचिका पर 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और एसीबी के एडीजीपी के वकील के प्रतिवेदन पर गौर किया था। इसके बाद पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीश से सुनवाई स्थगित करने को कहा था।