उत्तराखंड के इस शहर से गुजरने से परहेज करते थे अंग्रेज अफसर, यह थी वजह

उत्तराखंड के पंच प्रयागों में एक नंदप्रयाग की पहचान एक धार्मिक और आध्यात्मिक कस्बे के तौर पर है। लेकिन आजादी के महासंग्राम में इस तीर्थस्थल ने अंग्रेजों को घुटनों के बल चलने के लिए मजबूर किया। स्थिति यह थी कि क्रांतिकारियों को देखकर नंदप्रयाग से गुजरते वक्त अंग्रेज अफसर भी सिर से अपना हैट उतार लिया करते थे।

छोटा सा पहाड़ी कस्बा नंदप्रयाग स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और आाजादी के रणबांकुरों का संघर्ष का केंद्र था। नंदप्रयाग के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. राम प्रसाद बहुगुणा के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता समीर बहुगुणा बताते हैं स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का यह तीर्थस्थल रहा।

तब इस कस्बे की आबादी काफी कम थी, लेकिन आसपास के हजारों लोग यहां जुटते थे। रोज प्रभात फेरी निकालकर आजादी की आवाज बुलंद करते थे। नंदप्रयाग कस्बे से चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी के अलग-अलग आंदोलनों में जेल भी गए। समीर बहुगुणा के मुताबिक उनके पिता स्व. राम प्रसाद बहुगुणा बताते थे कि आजादी के संघर्ष के दिनों में नंदप्रयाग की स्थिति यह थी कि अंग्रेज अफसर यहां से गुजरने में परहेज करते थे।

आजादी के संघर्षशील रणबांकुरों की हनक थी कि अगर अंग्रेज अफसर नंदप्रयाग से होकर जा रहे हैं तो वह अपने घोड़े से उतरकर पैदल कस्बे को पार करते थे। इतना ही नहीं पूरे कस्बे में सिर से अपना हैट उतारकर चलते थे। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर जरा भी हनक दिखाई तो क्रांतिकारी उन्हें यहीं घेर लेंगे।

नंदप्रयाग था आजादी का रणनीतिक केंद्र: नंदप्रयाग की राजनैतिक चेतना ही थी कि इसे छोटा लखनऊ कहा जाता था। नंदप्रयाग से ही गढ़वाल मंडल की स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियां बनती थीं। कोटद्वार के दुगड्डा में क्रांतिकारियों के अंग्रेजों के निशाने पर आने पर अधिकांश क्रांतिकारी नंदप्रयाग में ही रुककर आजादी की रणनीति को अंजाम देते थे।

आजादी पर जुटे थे 20 हजार लोग: 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्र होने की घोषणा हुई तो पूरे इलाके के लोगों ने नंदप्रयाग पहुंचकर आजादी का जश्न मनाया था। बताया जाता है कि इस दिन नंदप्रयाग में 20 हजार लोग जुटे थे और भारत माता के जयकारों से पूरी घाटी गूंज उठी थी।

तीन पीढ़ियों ने लड़ा स्वतंत्रता संग्राम
समीर बहुगुणा बताते हैं कि बहुगुणा परिवार की तीन पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। गढ़केसरी स्व. अनसूया प्रसाद बहुगुणा को अंग्रेजों ने मजिस्ट्रेट बनाने की पेशकश की थी, लेकिन इसे ठुकराकर वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। अनसूया प्रसाद बहुगुणा के भतीजे स्व. रामप्रसाद बहुगुणा को तो स्कूल के दिनों में ही अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था। राम प्रसाद के भतीजे बद्रीप्रसाद बहुगुणा ने भी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। नंदप्रयाग के स्व. जोध सिंह मनराल, वरिष्ठ पत्रकार राधाकृष्ण वैष्णव का आजादी के आंदोलन में योगदान रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published.