तदर्थ विनियमित शिक्षकों के सीनियरिटी के विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। जिस आदेश के आधार पर चार हजार तदर्थ शिक्षकों को पक्का किया गया, उसके दस्तावेज ही नहीं मिल रहे। 21 नवंबर 1995 के आदेश में जिस प्रकार पर्वतीय जिलों के बजाए उत्तराखंड शब्द का उल्लेख हुआ है, वह भी सवाल उठा रहा है। सरकार द्वारा यूपी भेजी गई टीम के खाली हाथ लौटने से यह मामला और भी उलझ गया।
हाईकोर्ट ने एक मामले में शिक्षा विभाग और तदर्थ विनियमित शिक्षकों से उनका पक्ष मांगा है। यूपी सरकार ने 1995 में तदर्थ शिक्षकों को परमानेंट किया था। लेकिन उस आदेश में यह भी लिख दिया गया कि इन्हें 1990 से पक्का माना जाए। तदर्थ शिक्षकों को उत्तराखंड में 1999 से 2002 के दौरान पक्का किया गया। मौलिक नियुक्ति बाद की होने के कारण उन्हें 1990 से सीनियरिटी नहीं दी जा रही है।
हालांकि, हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने 23 जुलाई 2019 को उन्हें सीनियरिटी देने का आदेश दे दिया।इस आदेश पर विवाद होने पर सरकार ने सीनियरिटी का आदेश वापस ले लिया। 21 अप्रैल 2022 को लोकसेवा अभिकरण ने सीनियरटी न देने के फैसले को गलत ठहराते हुए मामले को तीन महीने में निस्तारित करने को कहा। इसके बाद शिक्षा सचिव रविनाथ रमन ने जीओ की जांच के लिए टीम यूपी भेजी थी। सू्त्रों के अनुसार टीम को इस आदेश से संबंधित पत्रावलियां नहीं मिलीं।
हम शुरू से वर्ष 1995 के जीओ की प्रमाणिकता पर सवाल उठा रहे हैं। तदर्थ विनियमितीकरण नियमावली 1979 के अनुसार ही तदर्थ शिक्षकों को परमानेंट किया जाता है। इस मामले में नियमावली को ही ताक पर रख दिया गया।
ओमप्रकाश कोटनाला, अध्यक्ष-राजकीय शिक्षक संघर्ष समिति
यदि जीओ गलत होता तो सरकार ने चार हजार तदर्थ शिक्षकों को नियमित क्यों किया? यूपी टीम भेजा जाना इस मामले में निर्णय को लटकाने के लिए है।
वीरेंद्र दत्त बिजल्वाण, मुख्य संयोजक, विनियमितीकृत राजकीय माध्यमिक शिक्षक समिति
इस मामले में कुछ गंभीर पहलू सामने आए हैं। न्याय विभाग से राय ली जा रही है। सरकार हाईकोर्ट में सभी पहलुओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करेगी।