हमारे पहाड़ कम उम्र के हैं। वे बहुत कच्चे और संवेदनशील हैं। इसलिए यहां कोई भी निर्माण पूरे विवेक और पर्यावरणीय संवेदनशीलता व विज्ञान के हिसाब से करना होगा। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पा रहा है। नतीजा जोशीमठ भू-धंसाव का संकट हमारे सामने है। यह घटना सरकारों का अड़ियलपन का नतीजा है।
यह कहना है कि पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा का। चोपड़ा चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने वाली सुप्रीमकोर्ट की हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी बेबाक सिफारिशें सरकारों को असहज करती रही हैं।
जोशीमठ भू धंसाव के बारे में चोपड़ा कहते हैं, मैं इस तरह के पर्यावरणीय खतरों के संबंध में कई बार कह चुका हूं। सुप्रीमकोर्ट की हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट में भी हम लिख चुके हैं। भू-वैज्ञानिक और हिमनद विज्ञानी यह कह चुके हैं कि हिमालय क्षेत्र में बड़ी परियोजनाएं बनाने से हमें परहेज करना होगा।
वर्ष 2013 और फरवरी 2021 घटनाएं कोई भूला नहीं है। चोपड़ा कहते हैं, यह बात सरकारें नहीं समझ पा रही हैं कि विवेक, संवेदनशीलता और विज्ञान के हिसाब से विकास नहीं करेंगे तो ऐसे हादसे सामने आते रहेंगे। ऐसी स्थिति में हम हड़बड़ी में कुछ कर देते हैं, लेकिन वह टिकता नहीं है।
कमेटी की इन सिफारिशों को नजरअंदाज
जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन के लिए चोपड़ा यूपी से लेकर उत्तराखंड की सरकारों को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं, 1976 में सरकार की ओर से गठित एनसी मिश्रा कमेटी ने साफ कर दिया था कि जोशीमठ का पहाड़ अतिसंवेदनशील ढाल है। यहां जो भी निर्माण कार्य हों, वह सोच-समझकर हों, इसमें वृहद स्तर पर पौधारोपण हो। कमेटी की इन सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया। कुछ नहीं माना। फिर 2013 की आपदा के हमारी कमेटी ने रिपोर्ट दी। उसमें कहा गया कि, धौलीगंगा और अलकनंदा की तरफ जो बांध बन रहे हैं, ये नहीं बनने चाहिए। तब तक कोई काम भी शुरू नहीं हुआ था। बाद में बांध बनाने का काम बढ़ता रहा। सरकारें संवेदनशील होतीं गौर करतीं कि उन्हें क्या करना चाहिए।
ऊपरी इलाकों में बांधों पर रोक लगे, नए को भूल जाएं
पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा कहते हैं, हाईपावर कमेटी की रिपोर्ट में हमने सिफारिश की थी कि 2200 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बांध नहीं बनने चाहिए। इन पर काम शुरू नहीं हुआ है उन पर रोक लगा दी जानी चाहिए और जो लाइन में खड़े हैं, उन्हें भुला देना चाहिए।
मेरा मानना है कि प्रकृति हमें आगाह कर रही है। इसलिए हमें चेत जाना चाहिए। सड़कों के चौड़ीकरण के प्रस्ताव पर एक बार फिर विचार करना होगा। हाईपावर कमेटी 2020 में यह रिपोर्ट तैयार की थी, जबकि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 2018 में सड़कों की सीमित चौड़ाई को लेकर अधिसूचना जारी की थी। उस अधिसूचना का कहना मानना चाहिए।
- जहां बड़े विकास कार्य करने हैं, वहां उस क्षेत्र की कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन ईमानदारी करें फिर निश्चय करें क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए।
- भागीरथी इको सेंसिटिव जोन को लेकर हमने जो सिफारिशें की थीं, यहां छेड़छाड़ न हो, विकास करने के कई और तरीके हैं।
- लाखों को लोगों को सीधे धामों तक निजी वाहनों से जाने से रोकें और पेट्रोल व डीजल फूंकेंगे तो इससे ग्लेशियर पर प्रभाव पड़ेगा, वे तेजी से पिघलेंगे।
- एक निश्चित दूरी पर पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों को रोककर आगे का सफर इलेक्ट्रिक वाहनों से पर्यटकों को ले जाइये।