जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर अक्टूबर माह में सरकार को सौंपी गई विशेषज्ञों की रिपोर्ट पूरी कहानी बयां करने के लिए काफी है। 28 पेज की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कैसे जोशीमठ की जमीन कमजोर है और कैसे अलग-अलग समय की आपदा में इस क्षेत्र में व्यापक नुकसान देखा गया।
खासकर रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सात फरवरी 2021 को ऋषिगंगा नदी की बाढ़ और इसके बाद अक्टूबर 2021 में रिकार्ड की गई 1900 मिलीमीटर की वर्षा के बाद यहां भूधंसाव में तेजी देखने को मिली। हालांकि, इस रिपोर्ट में हालिया चर्चा का विषय बना जलविद्युत परियोजना के टनल के पानी का जिक्र नहीं है।
सात फरवरी 2021 को ऋषिगंगा की बाढ़ में भारी मलबा आया था
- विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, सात फरवरी 2021 को ऋषिगंगा की बाढ़ में भारी मलबा आया, जिससे अलकनंदा नदी के बहाव में बदलाव के चलते जोशीमठ के निचले क्षेत्र में भूकटाव तेज हुआ।
- इसी तरह 17 से 19 अक्टूबर के बीच जोशीमठ क्षेत्र में 190 मिलीमीटर की भारी से भारी वर्षा रिकार्ड की गई।
- इन घटनाओं के दौरान रविग्राम व नउ गंगा नाला क्षेत्र में भूकटाव अधिक पाया गया।
- इन्हीं घटनाओं के दौरान जोशीमठ क्षेत्र में भूधंसाव भी तेज हुआ।
- इससे पहले वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान भी जोशीमठ क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाओं को अधिक रिकार्ड किया गया। इससे पता चलता है कि किसी भी आपदा के दौरान यहां के कमजोर पहाड़ों पर प्रतिकूल असर तेज हो रहा है।
- विशेषज्ञों की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि जोशीमठ की बसावट कमजोर सतह पर होने के बाद भी यहां के तमाम नाला क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण किए गए हैं। जिसके चलते नालों पर प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।
- ऐसे में पानी नालों के सामान्य प्रवाह में निचले क्षेत्रों में जाने की जगह कमजोर साथ में समाने के चलते भूधंसाव की घटनाओं को बढ़ा रहा है।
नालों में जियोसिंथैटिक उपचार जरूरी
रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि रविग्राम, नउ गंगा, कमाद-सेमा, चुनार, कमेत-मारवाड़ी जैसे नालों के ड्रेनेज सिस्टम में अविलंब सयुधार किया जाए। इनमें सीधे ढाल में बहाव की जगह चरणवार बहाव का इंतजाम किया जाए। साथ ही पानी को जमीन में स्वतः समा देने की जगह जियोसिंथैटिक शीट के माध्यम से सीपेज रोकी जाए।
भवनों की नींव मिली कमजोर, व्यवस्थित निर्माण पर बल
सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ में बड़ी संख्या में भवनों की नींव कमजोर है। कई भवन ऐसे खड़े हैं, जिनमें नींव का हिस्सा ही गायब है और ढाल पर खड़े होने के बाद भी रिटेनिंग वाल का सपोर्ट नहीं है। इसी तरह के भवन अधिक खतरे की जद में आ गए हैं। लिहाजा, यहां बड़े निर्माण पर रोक लगाने के साथ ही उच्च तकनीक आधारित निर्माण को ही अनुमति दी जानी चाहिए।
बड़ा भूकंप आया तो होगा सर्वाधिक नुकसान
अध्ययन दल में शामिल वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की वरिष्ठ विज्ञान डा. स्वप्नमिता ने कहा कि जोशीमठ क्षेत्र भूकंप के अतिसंवेदनशील जोन पांच में है। वहीं, यहां की जमीन कमजोर होने के चलते भूकंप का सर्वाधिक असर पड़ेगा।
गंभीर यह भी है कि वर्ष 1803 के गढ़वाल भूकंप, 1905 के कांगड़ा भूकंप और 1934 के बिहार-नेपाल के बड़े भूकंप के बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। ऐसे में कभी भी विशाल भूकंप आया सकता है और इस स्थिति में जोशीमठ जैसे क्षेत्र के लिए खतरा और बढ़ जाएगा। इन तमाम बातों को देखते हुए सुरक्षा के हरसंभव उपाय अविलंब करने होंगे।