उत्तराखंड में लग्जरी उत्पादों पर लोगों को नया टैक्स चुकाना पड़ सकता है। महंगे टेलीविजन, मोबाइल फोन के साथ ही अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों को इसके दायरे में लाया जा सकता है। वित्त विभाग के स्तर पर इस संदर्भ में विचार-विमर्श चल रहा है।
दरअसल अगले वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही से राज्य को केंद्र से मिलने वाले जीएसटी प्रतिपूर्ति का भुगतान बंद होने जा रहा है।
जिससे राज्य को भारी राजस्व नुकसान की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में वित्त विभाग ने राजस्व बढ़ाने के विकल्पों पर विचार विमर्श शुरू कर दिया है। इसी के तहत उत्तराखंड में लग्जरी उत्पादों पर नया सेस लगाने की योजना बनाई जा रही है। बताया जा रहा है कि इसके तहत वे उत्पाद आएंगे जिनकी कीमत लाखों में है और आम लोगों की खरीद से बाहर हैं।
सूत्रों के अनुसार राज्य में महंगे इलेक्ट्रानिक्स की अच्छी खासी डिमांड है। लोग लाखों के टीवी, फोन व अन्य उपकरण खरीद रहे हैं। ऐसे में इस प्रकार के सभी लग्जरी उत्पादों पर नया सेस लगाने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि नए सेस के दायरे में कौन-कौन से उपकरण या उत्पाद आएंगे यह अभी तय नहीं है। इस संदर्भ में निर्णय भी नई सरकार को लेना है।
राज्य को छह हजार करोड़ का नुकसान
जून 2022 के बाद जीएसटी प्रतिपूर्ति बंद हो जाने के बाद राज्य को सालाना छह हजार करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। दरअसल केंद्र सरकार ने जीएसटी की व्यवस्था लागू करते समय राज्यों को यह आश्वासन दिया था कि नई व्यवस्था में होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई की जाएगी। जीएसटी लागू होने के बाद राज्य को नुकसान हुआ तो केंद्र सरकार ने हर साल उसकी भरपाई की। लेकिन जून 2022 में पांच साल की अवधि पूरी हो रही है। जिसके बाद प्रतिपूर्ति मिलना बंद हो जाएगा और राज्य को राजस्व का नुकसान खुद ही झेलना पड़ेगा।
आय बढ़ाने के अन्य विकल्प भी तलाशने होंगे
जीएसटी प्रतिपूर्ति की व्यवस्था यदि आगे जारी नहीं रहती तो उत्तराखंड के लिए वित्तीय स्थिति को संभाल पाना आसान नहीं होगा। लग्जरी टैक्स से भी राज्य कुछ ही करोड़ का राजस्व एकत्र कर पाएगा। जबकि नुकसान छह हजार करोड़ से अधिक का होगा। ऐसे में लग्जरी टैक्स के अलावा भी राज्य में कुछ ऐसे उपाय करने होंगे जिससे राज्य की आय बढ़ाई जा सके। अन्यथा राजस्व के मोर्चे पर सरकार को भारी कठिनाइयों का समाना करना पड़ सकता है।
राज्य को पांच सालों में मिली प्रतिपूर्ति
2017- 18 में 1280 करोड़
2018-19 में 2040 करोड़
2019-20 में 2480 करोड़
2020- 21 में 5000 करोड़
2021- 22 में 6000 करोड़